☀️गोर योद्धा--​बाबा लख्खीशाह (लाखा) बंजारा जयंती के उपलक्ष में.........!



☀️लेखक-किशोर आत्माराम नाईक: गोर बंजारा विर योद्धा और गाथाएं.


 गोर बंजारा विर योद्धांयोमे लाखाब़ंजारा का नाम शिर्षपर आता है। लख्खीशाह बंजारा का जन्म दिल्ली के रायसिना टांडा में हुआ था। पिता का नाम गोधू व दादा का नाम ठाकुरदास बंजारा था। उनके पास दो लाख बीस हजार बैल और बीसियों हजार मालवाहक बैलगाड़ियाँ थीं। उनके एक काफिले में आठ से दस हजार तक बैलगाड़ियाँ होती थीं जिनमें से हरेक पर लगभग तीन क्विंटल माल लदा होता था। मूलतः नमक, अनाज के अलावा ,घोड़ों की काठें या ज़ीन, रकाबें, हौदे, सैन्य रसद का सामान लदा होता था। माल का परिवहन दो तरफा होता था और मुद्राओं के अलावा सामान से सामान का विनिमय होता था।
  काफिले का प्रमुख नायक कहलाता था और लक्खी शाह भी खुद धनी बंजारा नायक था। ।बुंदेलखंड और महाकौशल के इलाकों में लख्खीशाह का काफिला ही कारोबार करता था। जंगल पहाडोसे जलना पडता था। इसलिए खतरोसे निपटनेके लिए तांडा लढाकू था। तांडेमे बहोत सारे नौजवान युद्धकौशल मे माहिर थे। तांडे कि रक्षा करना ही उनका प्रमुख कर्तव्य था।
काफिले में चलने वाले लगभग बीस पच्चीस हजार लोगों के लिऐ हर प्रमुख पड़ाव पर लाखा बंजारा ने सराय, कुँए और तालाब बनवाऐ थे। ।   लख्खी शाह ने सागर में बहोत सी संरचनाऐं बनवाईं थीं उनमें कटरा नमकमंडी का पड़ाव,झरना परकोटा से लेकर मस्जिद के चारों कोनों तक कई कुंए और जिससे लाखा बंजारा झील शामिल हैं।
सबसे अहम घटना जिसने लख्खी शाह को महापुरूष बना दिया वह नौंवे गुरू श्री तेग बहादुर के शव को शहीदी स्थल से भरी भीड़ के बीच जाकर उठाना । दिल्ली के चांदनी चौक में जहाँ आज गुरूद्वारा रकाबगंज है वहाँ औरंगजेब ने गुरू तेगबहादुर जी का शीश कटवाया गया था।
लोगों के मन में दहशत फैलाने के विचार से तत्कालीन मुगल हुकुमत ने निर्णय लिया कि गुरुजी के पावन शरीर के चार टुकड़े कर राजधानी दिल्ली के चार प्रमुख दरवाजों दिल्ली, अजमेरी, लाहोरी, और कश्मीरी पर लटका दिये जायेंगे। भाई जैताजी, भाई उदय जी बाबा लक्खीशाह बंजारा भाई नानू और मख्खनशाह ने गुरुजी की पावन देह को सम्भालने की योजना बनाई इन सबकी सहायता से बाबा लक्खीशाह बंजारा गुरुजी की मृत धड़ उठाने में सफल हो गये।

 लख्खी शाह बंजारे और उनके कई साथियों ने साजिशपूर्वक घटनास्थल पर अफरातफरी मचवाई। कटे हुए शीश को उठा कर गुरू का एक शिष्य भाग निकला। तभी लख्खी शाह ने रूई से लदी सैकड़ों गाड़ियां वहाँ भेज दी। इन्हीं में से एक गाड़ी में गुरू के धड़ को लादा और रूई में छिपा कर अपने घर ले गये।  लख्खीशाह ने  रायसिना महल के भीतर पूरे विधिविधान से अंत्येष्टि की और तुरंत अपने आलीशान घर में आग लगा दी।
गुरू के शव को अपमान से बचाने वाले लख्खी शाह इतिहास में अमर हो गये।बाबा लक्खीशाह बंजारा की याद में गुरुद्वारा रकाबगंज परिसर में एक बहुत विशाल एवं भव्य बाबा लक्खीशाह बंजारा हाल स्थापित किया गया। जहाँ गुरुपर्व तथा अन्य मुख्य समारोह मनाये जाते हैं।
लख्खी शाह के आठ बेटे और एक बेटी थी। उसके  बेटों ने दसवें गुरू गोविंद सिंह जी की सेवा में लड़ते हुए शहादत पायी। इन सभी का नाम सहित पूरा ब्यौरा सिक्खी इतिहास में दर्ज है। नमन है ऐसै विर जाबांज योद्धा को और गर्व है कि हम उसी समाजसे है। जय गोर

☀️किशोर आत्माराम नाईक☀️
गोर बंजारा विर योद्धा और गाथाएं.

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