💥भारतीय स्वतंत्र्यता की ७५ वी वर्षगाठ मे सिखो का सब से बडा योगदान.....!


💥इस देश में जब तक गुरसिक्खी से बेइमानी एवंम ना इन्साफी होती रहेगी इस देश का भविष्य बिघडता रहेगा💥


💥वास्तव सच्चाई : लेखक - चौधरी दिनेश (रणजीत)

स्वतंत्रता के समय देश के दो बंटवारे के बाद जिन करोडो लोगों के घर उजड गए. जिन लोगों के परिवार कत्तल कर दियेगए. जिन लोगों के घर की बहूबेटियों की इन्सानी भेस में छुपे शैतानों द्वारा इज्जत लूट लीं गई. जिन लोगों के राज्यों को तोड़कर दो हिस्सों में बाँट दिया गया. उन लोगों की आज़ादी आज भी आधी अधूरी लगती हैं. तत्कालीन अत्याचारी अंग्रेजी हुक्मरानोने ता. १४ अगस्त १९४७ को प्रथमतः देश को हिस्सो में बांटकर एक हिस्से को बतौर पाकिस्तान बनाया और लाखों निर्दोष लोगों की बलि चढाकर ता. १५ अगस्त १९४७ को आधा अधूरा हिंदुस्थान. अपना घर परिवार एवं खेत संपत्ती छोड़ शरणार्थी बनकर जान बचाकर आये उन तमाम लोगों को आज भी इस आधी अधूरी आज़ादी क्या कोई मायने रखती हैं ? जिन २% लोगों ने हिंदुस्थान की आझादी के लिए सबसे ज्यादा बलिदान दिया. जिनकी बदौलत आज यह आधा अधूरा हिंदुस्थान आझादी की ७५ वीं वर्षगाँठ मना रहा है. उन देशभक्ति एवं इंसानियत की सबसे बडी जिंदा मिसाल बनें सिखों की परिस्थिति आज भी पंजाब छोड़कर अन्य राज्यों में विस्थापितों जैसी ही हैं यदी इस देश में सिख ना होते तो हमारा यह देश और धर्म तबाह हो चुका होता. अरे, जिस गुरसिक्खी की बदौलत हमारा अस्तित्व एवं स्वाभिमान आज कायम हैं, उस गुरसिक्खी की महानता को हम आज भी समझ नही पा रहें है. यह हमारा और हमारी आनेवाली पीढ़ियों का दुर्भाग्य हैं. जिन सिखों की बदौलत हमे आझादी मिली, उन सिखों का हँसता - खेलता पंजाब हमने आझादी के नाम पर दो हिस्सो में बाँट कर उनका सबकुछ उजाड दिया. सिख धर्म के संस्थापक प्रथम गुरु बाबा श्री गुरू नानकजी का जनमस्थान ननकाना साहिब सहित पवित्र पंजासाहिब, जो लाहौर क्षेत्र में आता है. वह लाहौर ही हमने तोडकर पाकिस्तानी शैतानों के हवाले कर दिया. इतना ही नहीं पाकिस्तान ने ता. 6 सितंबर 1965 को यानी आज से 54 साल पहले, भारतीय सेना ने भारत-पाकिस्तान युध्द में जीत हासिल करने के बाद भारतीय सेना ने लाहौर जिले के बर्की पुलिस थाने में तिरंगा झंडा फहराया था. इस युध्द में शूरवीर सिख अधिकारी एवं सिख सैनिकों का सबसे बड़ा योगदान रहा था. लेकिन भारतीय सेना एवं देशवासियों की भावनाओं को पैरों तले रौंदकर तत्कालीन भारतीय सत्ताधीशों द्वारा जीता हुए लाहौर का हिस्सा फिर से पाकीस्तान को सौंप दिया. उस के बाद ता. 16 दिसंबर 1971 को सिख जनरल जगजीतसिंघ अरोडा और जनरल शाबेगसिंघ इन शुरवीर योध्दाओं के नेतृत्व में लड़े गए भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था. उस युध्द में सेना द्वारा लाहौर जीत लिया गया और पूर्वी पाकिस्तान अर्थात बांगलादेश आजाद हो गया. इस युद्ध में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था. इस तरह सिखों ने मुगलो, अंग्रेजो और पाकिस्तानियों के खिलाफ लड़कर समय - समय पर देश और धर्म की रक्षा की. लेकिन आज भी इस देश में सिखों से लगातार ना इन्साफी हो रही हैं. इस देश में जब तक गुरसिखी से बेईमानी एवं ना इन्साफी होती रहेगी इस देश का भविष्य हमेशा ही बिघडता रहेगा. देश की आझादी और यहाँ के सर्वधर्मियों की हिफाजत के लिए जिन सिखों ने आपना सबकुछ कुर्बान किया, उन सिखों के साथ ता. 31 अक्तुबर 1984 में अकाल तखत पर हमला करके अनगिनत बेगुनाह श्रध्दालुओं को मौत के घाट उतारने का फरमान जारी करने वाली तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों द्वारा हत्या के बाद 'खून का बदला खून' के नारे लगाकर देश की राजधानी दिल्ली एवं अन्य राज्यों में राजनैतिक दहशतगर्दो द्वारा जिस दिल्ली की पवित्र धरती पर आपना शीश देकर नववें गुरू साहिब श्री गुरू तेगबहादर साहीब द्वारा बतौर इन्सानियत के नाते हिंदू धर्म अत्याचारी मुगल शासक औरंगजेब से बचाया था. उसी पवित्र धरती पर हजारों बेगुनाह सिख परिवारों का बेईमान राजनैतिक दहशतगर्दो द्वारा बेरहमी से कत्तलेआम किया गया. यह सामूहिक हत्याकांड मानवता के साथ साथ देश के लोकतंत्र पर लगा सबसे बड़ा बदनुमा दाग है. देश धर्म और इंसानियत की खातिर जिन गुरसिखों ने आपणा सबकुछ न्यौछावर कर दिया, उन गुरसिख एवं सिख योध्दाओं से यह देश लगातार ना इन्साफी कर रहा है. जिस वजह से आज सिखों में असुरक्षितता का माहौल बना हुआ हैं. यह एक कडवी सच्चाई हैं....और इस सच्चाई को कोई नकार नहीं पायेगा.....

टिप्पणी पोस्ट करा

0 टिप्पण्या