☀️हवा का रूख फिर एक बार बदल रहा हैं....थोडासा संभलकर रहना तुम मेरे दोस्तों...!


☀️तुम्हारें ही रहमों करम पर आसमान की उचाई छुनेवाले यह खादीधारी बेईमान तुम्हारी तबाही पर मन ही मन में मुस्कुरायेंगे☀️

✍🏻रचना ;- चौधरी दिनेश (रणजीत)

हवा का रूख फिर एक बार बदल रहा हैं...थोडासा संभलकर रहना तुम मेरे दोस्तों...रुख बदलती दलबदल की इस हवा में तुम यह ना समझना तुम छा जाओगे ? अरें तुम तो फिर इक बार पेड के सुखे पत्ते की तरह बीखर कर रह जाओगे ? वह गीरगीट की तरह रंग बदलकर फिर एक नया बाप बनायेंगे और तुम्हें तुम्हारी औकात दिखाकर हर वक्त की तरह इस बारभी आपणा उल्लू सिधा कर जायेंगे...!

तुम बतौर समर्थक बनकर आस्तीन के इन सापों को आपणा अन्नदाता समझकर राजनितीक क्षेत्र में बंदर की तरह उछलकूद मचाओंगे मगर वह रावण की तरह तुम्हारी अदृश्य पुंछ में दंगे फसाद करवाकर आग लगवायेंगे ? तुम उस आधुनिक रावण की लंका को आग लगानें की जगह आपणेही घर गृहस्थी में आग लगवाकर आपणा भविष्य जलाकर राख कर जाओगे...!!

अरें..अकल के अंधो जीन बेईमानों को तुम आपणा मसीहा समझ रहें हों वही एक दिन तुम्हारी भावनाओं सें खेलकर तुम्हारी बर्बादी का कारण बन जायेंगे' राजनिती के गलीयारों में वह दुश्मण केभी पैरो में गिरकर फिर आपणा फन फैलायेंगे तुम्हारें ही रहमों करम पर आसमान की उचाई छुनेवाले यह खादीधारी बेईमान तुम्हारी तबाही पर मन ही मन में मुस्कुरायेंगे...!!

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